Skip to main content

जां निसार अख्तर

अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फकत उनको सुनाने के लिए हैं

अब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं

देखूं तेरे हाथों को तो लगता है, तेरे हाथ
मंदिर में फकत दीप जलाने के लिए हैं

ये इल्म का सौदा, ये रिसालें, ये किताबें
एक शख्स की याद को भुलाने के लिए हैं

Comments

Popular posts from this blog