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Showing posts from April, 2014

सीधी नजर हुयी तो सीट

सीधी नजर हुयी तो सीट पर बिठा गए। टेढी हुयी तो कान पकड कर उठा गये। सुन कर रिजल्ट गिर पडे दौरा पडा दिल का। डाक्टर इलेक्शन का रियेक्शन बता गये । अन्दर से हंस रहे है विरोधी की मौत पर। ऊपर से ग्लीसरीन के आंसू बहा गये । भूंखो के पेट देखकर नेताजी रो पडे । पार्टी में बीस खस्ता कचौडी उडा गये । जब देखा अपने दल में कोई दम नही रहा । मारी छलांग खाई से “आई“ में आ गये । करते रहो आलोचना देते रहो गाली मंत्री की कुर्सी मिल गई गंगा नहा गए । काका ने पूछा 'साहब ये लेडी कौन है' थी प्रेमिका मगर उसे सिस्टर बता गए।।

बेखुदी ले गयी कहाँ हम को

बेखुदी ले गयी कहाँ हम को देर से इंतज़ार है अपना रोते फिरते हैं सारी-सारी रात अब यही रोज़गार है अपना दे के दिल हम जो हो गए मजबूर इस में क्या इख्तियार है अपना कुछ नही हम मिसाले-अनका लेक शहर-शहर इश्तेहार है अपना जिस को तुम आसमान कहते हो सो दिलों का गुबार है अपना

कहा मैंने कितना है गुल

कहा मैंने कितना है गुल का सबात कली ने यह सुनकर तब्बसुम किया जिगर ही में एक क़तरा खूं है सरकश पलक तक गया तो तलातुम किया किसू वक्त पाते नहीं घर उसे बहुत 'मीर' ने आप को गम किया

आए हैं मीर मुँह को बनाए

आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये 'मीर' पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज

बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो

बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये के अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना ये और बात के हम साथ साथ सब के गये अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारा गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो "फ़राज़" इन आँधियों मे तो प्यारे चिराग सब के गये

हंगामा है क्यूँ बरपा

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़ की ये बातें हैं इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है वां दिल में कि दो सदमे,यां जी में कि सब सह लो उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही से हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है -अकबर इलाहाबादी

बेपर्दा नज़र आईं जो चन्द बीवियाँ

बेपर्दा नज़र आईं जो चन्द बीवियाँ ‘अकबर’ ज़मीं में ग़ैरते क़ौमी से गड़ गया पूछा जो उनसे -‘आपका पर्दा कहाँ गया?’ कहने लगीं कि अक़्ल पे मर्दों की पड़ गया -अकबर इलाहाबादी

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ बाज़ार से गुज़रा हूँ खरीदार नहीं हूँ ज़िंदा हूँ मगर ज़ीस्त की लज़्ज़त नहीँ बाकी हर चंद के हूँ होश में, हुशियार नहीं हूँ - अकबर इलाहाबादी

हाले दिल सुना नहीं सकता

हाले दिल सुना नहीं सकता लफ़्ज़ मानी को पा नहीं सकता इश्क़ नाज़ुक मिज़ाज है बेहद अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता होशे-आरिफ़ की है यही पहचान कि ख़ुदी में समा नहीं सकता पोंछ सकता है हमनशीं आँसू दाग़े-दिल को मिटा नहीं सकता मुझको हैरत है इस कदर उस पर इल्म उसका घटा नहीं सकता -अकबर इलाहाबादी

भरी है अंजुमन लेकिन

भरी है अंजुमन लेकिन किसी से दिल नहीं मिलता, हमीं में आ गया कुछ नुक्स, या कामिल नहीं मिलता।  पुरानी रोशनी में और नई में फ़र्क़ इतना है, उसे किश्ती नहीं मिलती इसे साहिल नहीं मिलता।   [(अंजुमन = महफ़िल) (कामिल = पूर्ण योग्य) (साहिल = किनारा)] -अकबर इलाहाबादी

ये दिल लेते ही शीशे की तरह

ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा, मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है । हज़ारों दिल मसल कर पाँव से झुँझला के फ़रमाया, लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है । -अकबर इलाहाबादी

आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते

आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते, अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते। ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते, सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते। किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल, तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते। परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले, क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते। हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना, दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते। दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त, हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते। गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माने, पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते। -अकबर इलाहाबादी

हँस के दुनिया में मरा कोई, कोई रो के मरा

हँस के दुनिया में मरा कोई, कोई रो के मरा, ज़िन्दगी पाई मगर उसने, जो कुछ हो के मरा। जी उठा मरने से वह, जिसकी ख़ुदा पर थी नज़र, जिसने दुनिया ही को पाया था, वह सब खो के मरा। था लगा रूह पै, ग़फ़लत से दुई का धब्बा, था वही सूफ़िये-साफ़ी जो उसे धो के मरा। [(ग़फ़लत = असावधानी, बेपरवाही ) , (सूफ़िये-साफ़ी = ब्रह्मज्ञानी/ शुद्ध करने वाला)] -अकबर इलाहाबादी

तहसीन के लायक

तहसीन के लायक तिरा हर शेर है 'अकबर', अहबाब करें बज़्म में अब वाह कहाँ तक । -अकबर इलाहाबादी [(तहसीन = प्रशंसा), (अहबाब = दोस्त, मित्र), (बज़्म = महफ़िल, सभा)]

नहीं कुछ इसकी पुर्सिश

नहीं कुछ इसकी पुर्सिश उल्फ़ते-अल्लाह कितनी है, यही सब पूछते हैं आपकी तनख़्वाह कितनी है । -अकबर इलाहाबादी [(पुर्सिश = पूछताछ), (उल्फ़ते-अल्लाह = ईश्वर प्रेम)]

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी; जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी; ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार; बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी; उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू; के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी; चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन; जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी; क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार; ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी।

​ फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं​

​ फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं​; ​ मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं​;​ ​ ​ लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला​; ​ मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं​; ​ मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो ​;​ जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं​; ​ ​​ "फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है​; ​​ ​ तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं​।

न था कुछ तो ख़ुदा था,

न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता, तो ख़ुदा होता, डुबाया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।   हुई मुद्दत, कि ग़ालिब मर गया, पर याद आता है, वह हर बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।

यह देखकर जनाजे के फूल भी

यह देखकर जनाजे के फूल भी हैरान हो गए.. कि अब शहीद भी हिन्दू और मुसलमानहो गए.. लहू जो बिखरता है अपने देश की सरहदों पर, उसके रंग भी राम और रहमान हो गये..!! सियासत की चालों को कोई समझ न पाया, खद्दर की खोल में सब शैतान हो गये... शहरे दिलों में जहां कभी जश्न रहता था, वहां हरे और केसरिया मकान हो गये..!! बर्फ में, रेगिस्तानों में, संमुदर में, तूफानों में, चौकस जवानों के रहबर अब बेईमान हो गये.. मज़हबी बवाल का ज़हर घोल रहे मुल्क की फ़िज़ा में, कुछ अमित शाह और कुछ आज़म ख़ान हो गये..!

मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम

मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम; एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम; आँसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर; मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम; जब दूरियों की आग दिलों को जलायेगी; जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम; गर दे गया दग़ा हमें तूफ़ान भी 'क़तील'; साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम।

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे

तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे; जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे; तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं; देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे; बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो; चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे; किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है; हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे; अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुम्किन है; हम तो उस दिन राए देंगे जिस दिन धोका खायेंगे।

तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती

तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती; नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती; तुम्हीं को देखने की दिल में आरजूए हैं; तुम्हारे आगे ही और ऊंची नज़र नही होती; ख़फ़ा न होना अगर बढ़ के थाम लूं दामन; ये दिल फ़रेब ख़ता जान कर नहीं होती; तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है; फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती।

Koi Naa Jaan Saka Woh Kahan Se Aaya Tha

Koi Naa Jaan Saka Woh Kahan Se Aaya Tha; Aur Us Ne Dhoop Se Baadal Ko Kyon Milaya Tha; Yeh Baat Shayad Logon Ko Pasand Aayi Nahin; Makaa'n Chota Tha Lekin Bohat Sajaya Tha; Woh Ab Wahan Hai Jahan Raste Nahin Jate; Main Jis Ke Sath Yahan Pichle Saal Aya Tha; Suna Hai Us Pe Chehekne Lage Hain Parindey Bhi; Woh Aik Pau'daa Jo Hum Ne Kabhi Lagaya Tha; Chiragh Doob Gaye Kapkapaye Honton Par; Kisi Ka Hath Hamare Labo'n Tak Aya Tha; Badan Ko Chorr Ke Jana Hai Aasman Ki Taraf; Samundro'n Ne Humein Yeh Sabaq Parhaya Tha; Tamam Umar Mera Dam Isi Dhuyein Mein Ghutta; Woh Ik Chiragh Thaa Maine Usey Bhujaya Tha!

Tere Ishq Ki Intaha Chahta Hun

Tere Ishq Ki Intaha Chahta Hun; Meri Sadgi Dekh Kya Chahta Hun; Sitam Ho K Ho Wada-e-Behijabi; Koi Bat Sabr-Azma Chahta Hun; Ye Jannat Mubarak Rahe Zahidon Ko; K Main Ap Ka Samna Chahta Hun; Koi Dam Ka Mehman Hun Ai Ahl-e-Mahfil; Chirag-e-Sahar Hun, Bujha Chahta Hun; Bhari Bazm Mein Raz Ki Bat Kah Di; Bara Be-Adab Hun, Saza Chahta Hun!

तुझको याद करके रोता है

तुझको याद करके रोता है अब दीवाना तेरा; जो ना भूल पाएगा कभी भी ठुकराना तेरा; तुम हमें भूल जाओ शायद ये फितरत है तेरी; मुश्किल है हमारे लिए प्यार भुलाना तेरा।

दिल ही दिल में हम तुमसे

दिल ही दिल में हम तुमसे प्यार करते हैं; हम ऐसे हैं जो मोहब्बत में जाँ निसार करते हैं; निगाहें मिलाते हैं अक्सर लोगों से छुपाकर; जैसे किसी गुनाह को यारो गुनाहगार करते हैं।

बर्बादी का दोष दुश्मनों को देता रहा मैं अब तलक

बर्बादी का दोष दुश्मनों को देता रहा मैं अब तलक; दोस्तों को भी परख लिया होता तो अच्छा होता; यूँ तो हर मोड़ पर मिले कुछ दगाबाज लेकिन; आस्तीन को भी झठक लिया होता तो अच्छा होता।

Maine to yunhi dekha tha

Maine to yunhi dekha tha deedar-e-shauq ki khatir, Tum dil mein utar jaaoge kabhi socha na tha

लफ्ज़ वही हैं , माईने बदल गये हैं

लफ्ज़ वही हैं , माईने बदल गये हैं किरदार वही ,अफ़साने बदल गये हैं उलझी ज़िन्दगी को सुलझाते सुलझाते ज़िन्दगी जीने के बहाने बदल गये हैं.

Aata nahi hamein ikraar karna

Aata nahi hamein ikraar karna,... Na jane kaise seekh gaye  pyaar karna.... Rukte na the do pal kisi ke  liye..... Na jane kaise seekh gaye  intzaar karna....

Masoom Mohabbat Ka Bas Itna Sa Fasaana Hai

Masoom Mohabbat Ka Bas Itna Sa Fasaana Hai, Kaagaz Ki Haveli Hai, Baarish Ka Zamaana Hai, Kya Shart-E-Mohabbat Hai, Kya Shart-E-Zamaana Hai, Aawaz Bhi Zakhmi Hai, Aur Geet Bhi Gaana Hai, Us Paar Utarney Ki Ummeed Bahot Kam Hai, Kashti Bhi Purani Hai, Toofan Ko Bhi Aana Hai, Samjhey Yaa Naa Samjhey Wo Andaaz Mohabbat Ka, Ek Shaqs Ko Aakhon Say, Ek Shair Sunaana Hai, Bholi Si Adaa, Koi Phir Ishq Ki Zidd Par Hai, Fir Aag Ka Darya Hai, Aur Doob K Jaana Hai...!!!

Teri Pyari Si Dosti

Teri Pyari Si Dosti Kaise  Bhul Jaun.. Pal-Pal Tumhari Yadon me  kyun na Aaun.. Ae Dost Teri Dosti Sabse  Pyari Hai.. Phir Tumhe Apni Yaad Kyu  Na Dilaun. Teri Pyari Si Dosti Kaise  Bhul Jaun

Sab mujhe hi kahte hain ki

Sab mujhe hi kahte hain ki tum use bhool ja Koi use kyun nahi kehta ki wo mera ho jaaye...