गर यही है आदत-ए-तकरार हँसते बोलते मुँह की एक दिन खाएँगे अग्यार हँसते बोलते थी तमन्ना बाग-ए-आलम में गुल ओ बुलबुल की तरह दिल-लगी में हसरत-ए-दिल कुछ निकल जाती तो है मेरी किस्मत से जबान-ए-तीर भी गोया नहीं आप को देखा सर-ए-बाजार हँसते बोलते वर्ना क्या क्या जखम-ए-दामनदार हँसते बोलते बैठ कर हम तुम कहीं ए यार हँसते बोलते आज उज्र-ए-इत्तिका तस्लीम कल तक यार से बोसे ले लेते हैं हम दो-चार हँसते बोलते
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