दमकते रूप की दीपावली जलाई हुई लहू में डूबी उमंगों की मौत रोक ज़रा फ़िराक़ गोरखपुरी -------------------------------------------- राहों में जान घर में चराग़ों से शान है दीपावली से आज ज़मीन आसमान है ओबैद आज़म आज़मी -------------------------------------------- दीपावली मिरी साँसों को गीत और आत्मा को साज़ देती है ये दीवाली है सब को जीने का अंदाज़ देती है नज़ीर बनारसी -------------------------------------------- आँख की छत पर टहलते रहे काले साए कोई पलकों में उजाले भरने नहीं आया कितनी दिवाली गयी, कितने दशहरे बीते इन मुंडेरों पे कोई दीप धरने नहीं आया -------------------------------------------- घर की क़िस्मत जगी घर में आए सजन ऐसे महके बदन जैसे चंदन का बन आज धरती पे है स्वर्ग का बाँकपन अप्सराएँ न क्यूँ गाएँ मंगलाचरण ज़िंदगी से है हैरान यमराज भी आज हर दीप अँधेरे पे है ख़ंदा-ज़न उन के क़दमों से फूल और फुल-वारियाँ आगमन उन का मधुमास का आगमन उस को सब कुछ मिला जिस को वो मिल गए वो हैं बे-आस की आस निर्धन के धन है दीवाली का त्यौहार जितना शरीफ़ शहर की ब
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