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भूख वो मुद्दा है

भूख वो मुद्दा है जिसकी चोट के मारे हुए
कितने युसुफ बेकफ़न, अल्लाह के प्यारे हुए

हुस्न की मासुमियत की जद में रोटी आ गई
चांदनी की छांव में भी फूल अंगारे हुए

मां की ममता बाप की शफ्कत गरानी खा गई
इसके चलते दो दिलों के बीच बंटवारे हुए

बाहरी रिश्तों में अब वो प्यार की खुशबू नहीं
तल्खियों से जिन्दगी के हाशिए खारे हुए

जीस्त का हासिल यही हक के लिए लड़ते रहो
खुदकुशी मंज़िल नहीं ऐ जीस्त से हारे हुए

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