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कठिन है राहगुज़र

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो;
बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो;

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है;
मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो;

नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं;
बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो;

ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है;
किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो;

अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के;
अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो;

तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है;
'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।

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अहमद फराज

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन है ख़राबों  में मिलें तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें ग़म-ए-दुनिया  भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माज़ी  है "फ़राज़" जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों  में मिलें