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​दिल में अब यूँ तेरे

​दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते है;
​जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते है​;
​​रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो​;​
सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है​;​
​और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो ​;​
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है​;​
इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन ​;​
मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है​;​
​कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग;
​वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है। ​

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अहमद फराज

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन है ख़राबों  में मिलें तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें ग़म-ए-दुनिया  भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माज़ी  है "फ़राज़" जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों  में मिलें