बहुत जुदा है औरोँ से....मेरे दर्द की कहानीँ , जख्म का कोई निशाँ नहीँ और दर्द की कोई इँतहा नहीँ।
थे केक की फ़िक्र में सो रोटी भी गई, चाही थी शै बड़ी सो छोटी भी गई । वाइज़ की नसीहतें न मानी आख़िर, पतलून की ताक में लंगोटी भी गई ।
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